“आत्मा के पास बहुत थोड़ी शक्ति है, बिल्कुल न के बराबर। वह केवल अपनी शक्ति से न तो कर्म कर सकता है, और न ही फल भोग सकता है।” “जब ईश्वर आत्मा को शरीर मन इंद्रियां बुद्धि तथा पृथ्वी आदि पंचमहाभूत अनाज फल फूल साग सब्जी आदि आदि सब पदार्थ बनाकर देता है, तब तो आत्मा को होश आता है। इसके बिना तो वह बेहोश ही होता है। अर्थात उसकी अपनी शक्ति इतनी कम है, कि यदि ईश्वर उससे अपनी सारी सुविधाएं शरीर मन इंद्रियां बुद्धि आदि वापस ले ले, तो आत्मा पत्थर की तरह बेहोश हो जाएगा। इसलिए केवल अपनी शक्ति से आत्मा कुछ भी कार्य नहीं कर सकता।”रवींद्र सिंह मंजू सर मैहर की कलम कहती है कि “पिछले कर्मों के आधार पर ईश्वर ने इस बार आत्मा को मनुष्य आदि शरीर मन बुद्धि इंद्रियां आदि फल के रूप में प्रदान की। इन शरीर आदि पदार्थों की सहायता से वह नये कर्म करता है। और फिर ईश्वर उसे उसके कर्मों का फल अपनी न्याय व्यवस्था से देता रहता है।”
“कर्म करने में आत्मा स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छा से अच्छा बुरा सकाम या निष्काम जैसा भी चाहे, वैसा कर्म कर सकता है। परंतु फल ईश्वर की व्यवस्था के आधीन है।” आत्मा जैसा कर्म करता है, ईश्वर उसे उसी हिसाब से फल देता है। “यह जो ईश्वर फल देता है, वह ठीक-ठीक न्याय करता है, और सारा फल बिना कोई फीस लिए देता है।”*
रवींद्र सिंह मंजू सर मैहर की कलम कहती है कि अब विशेष विचार करने की बात तो यह है, कि “फल तो ईश्वर कर्म के आधार पर देता है, लेकिन फल देने में जो उसका श्रम होता है, उसका वह कोई भी मूल्य फीस के रूप में नहीं लेता। तो यह भी ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा है, कि वह बिना किसी स्वार्थ के सब आत्माओं को उनके कर्मों का फल देता रहता है। उसका स्वभाव परोपकारी है। इस कारण से ईश्वर सब को कर्मों का फल नि:शुल्क देता रहता है।”
रवींद्र सिंह मंजू सर मैहर की कलम कहती है कि यदि वह कर्मों का फल न दे, तो कोई भी व्यक्ति उसे इस प्रकार से दादागिरी से नहीं धमका सकता, कि “हे ईश्वर! तू हमारे कर्मों का फल क्यों नहीं देता?” ऐसी दादागिरी वाली भाषा तो उस व्यक्ति के साथ बोली जाती है, जिसने किसी से कुछ ऋण ले रखा हो। “ईश्वर ने हमसे कोई ऋण तो लिया नहीं। इसलिए हम उसे इस तरह की भाषा नहीं बोल सकते।” केवल प्रार्थना या निवेदन ही कर सकते हैं, कि “हे ईश्वर! आपकी कृपा से पहले भी हमें हमारे कर्मों का फल प्राप्त हुआ था। आगे भी आप अपनी कृपा बनाए रखें। हमारे कर्मों का फल देते रहें, और हमारी रक्षा करते रहें।”
“सांसारिक न्यायाधीश और वकील तो बहुत सारी फीस लेते हैं, फिर भी न्याय मिलने की कोई गारंटी नहीं देते। और वर्षों तक न्यायालय में केस चलता रहता है। उससे ढेर सारी चिंताएं और तनाव भोगना पड़ता है, वह सब अलग।” “जबकि ईश्वर के न्यायालय में न्याय मिलने की पूरी गारंटी है, और फीस बिल्कुल जीरो। यह ईश्वर का हम सब पर अत्यंत उपकार या एहसान है।”
“इसलिए ईश्वर का उपकार या एहसान सदा सबको मानना चाहिए। उसके संविधान के अनुसार ही सबको उत्तम कर्म करने चाहिएं, जिससे कि ईश्वर अपनी न्याय व्यवस्था से सदा सबको सुख देता रहे, और किसी को कभी भी दुख भोगना न पड़े।”आप सभी को सादर नमन। जय माता दी।
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