संवाददाता प्रदुमन कुमार उत्तर प्रदेश
गोरखपुर सोनौली मार्ग नेशनल हाईवे पर एक अज्ञात स्कारपियो ने बीते दिन एक सारस को ठोकर मार दी ठोकर लगने के बाद सारस पूरी तरीके से घायल हो गया जिसमें पक्षी के पैर टूट गए और वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया जिसके थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो गई बढ़ती जनसंख्या और आवागमन की स्पीड के कारण इंसान तो अपनी जान गवा रहे हैं वही प्रकृति की शोभा बढ़ाने वाले पक्षियों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है सरकार द्वारा संरक्षित इन पक्षियों को स्पीड के कारण बख्शा नहीं जाता सारास जैसे पक्षियों की प्रजाति धीरे-धीरे अब विलुप्त हो रही है जिसको लेकर सरकार भी सचेत है लेकिन आम जनमानस में सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे लोगों को इस बात का ध्यान भी देने की जरूरत है कि प्रकृति ने इन पक्षियों को प्रकृति की रक्षा के लिए ही सुसज्जित किया है अगर आम जनमानस सचेत नहीं हुआ तो इसी प्रकार एक एक पक्षी की हत्या व जान जाती रही तो फिर यह संरक्षित पक्षी आने वाले समय में किताबों और इतिहास में ही पढ़े जाएंगे और पृथ्वी के संतुलन बिगड़ने के आसार लग सकते हैं जिससे प्रकृति की संतुलित चयन भी बिगड़ सकती हैं।भारत सरकार ने 1972 ई॰ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, पारित किया था ताकि वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके लेकिन जमीन पर कानून पारित तो है पर तलब में नहीं जिस पर प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी सारस की घटती संख्या पर्यावरण व वन्यजीव प्राणी प्रेमियों के लिए बेहद चिंता का विषय है। सारस दुनिया में सबसे अधिक भारत में पाए जाते हैं। इसमें देश की कुल संख्या के लगभग 60 प्रतिशत सारस उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। इसी वजह से उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया है। क्षेत्र के गांगी बाजार के भेड़िया ताल, अहिरौली के जोखियहवा ताल, नरकटहा के टेड़वा ताल ,पनियरा आदि स्थानों पर अधिक संख्या में सारस पाए जाते थे परंतु वर्तमान समय में सारस पक्षी वर्तमान में क्षेत्र से तेजी से विलुप्त हो रहे है।
संरक्षण की है जरूरत
सारसों के संरक्षण की आवश्यकता है, कई बार शिकारी शिकार करके सारस को मार देते थे, परंतु इस समय वन विभाग की टीम समय समय पर गस्त करती रहती है जिससे अब शिकारी नजर नहीं आते हैं। सारस जब आबादी की तरफ आ जाते हैं तो कुत्तों तथा अन्य जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।
क्या है वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972
यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है इसमें कुल 6 अनुसूचियाँ है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।
अनुसूची-1 तथा अनुसूची-2 के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है अनुसूची-3 और अनुसूची-4 भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं।
अनुसूची-5 मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है।
छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है। इसे सन् 2003 में संशोधित किया गया है इस अधिनियम की सूची 1 या सूची 2 के भाग 2 के अंतर्गत आते हैं ,उनके अवैध शिकार, या अभ्यारण या राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को बदलने के लिए दण्ड तथा जुर्माने की राशि तय की गया है कम से कम कारावास 3 साल का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 10,000 है। दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर यह दण्ड कम से कम 3 साल की कारावास का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 25,000/है।