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फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले फिल्म स्टूडियोज सेटिंग एंड अलाइड मज़दूर यूनियन के वर्करों को मुलभुत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए राज्य सरकार को ज्ञापन सौपा गया।

फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले फिल्म स्टूडियोज सेटिंग एंड अलाइड मज़दूर यूनियन के वर्करों को मुलभुत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए राज्य सरकार को ज्ञापन सौपा गया।

मुंबई

फिल्म स्टूडियोज सेटिंग एंड अलाईड मज़दूर यूनियन सन १९८३ से कामगार आयुक्त कार्यालय, कामगार भवन, बांद्रा (पूर्व), मुंबई से पंजीकृत है। हमारे यूनियन के कुल सदस्य ४७००० से भी अधिक सदस्य है, जो दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हुए, अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। साथ ही फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज से संलग्न है। हमारे मेंबर सिनेमा जगत के क्षेत्र में जो सबसे निचले स्तर पर मजदूर का काम करते है जैसे लाइटमैन, कारपेंटर, पेंटर, स्पॉट- बॉय, मोल्डर, टेपिस्ट व सभी प्रकार के हेल्पर का काम करते है।

प्रोड्यूसर, टेक्नीशियन और मजदूर ये सभी फिल्म जगत में मिल जुलकर काम करते है, इसलिए परिवार का हिस्सा मानते हुए, कोरोना काल में प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और कलाकारों द्वारा वर्करों के लिए फेडरेशन के जरिये सहयोग राशि, राशन और आर्थिक रूप से मदद किया गया, उसके लिए हम सभी पधाधिकारी एवं वर्करों और उनकी परिवार के तरफ से सभी को धन्यवाद देते है।

महोदय, हमारे मेंबर्स आपके फिल्म, टी.वी. सीरियल के शुभ मुहर्त होने के दिन से काम खत्म होने बाद फ्लोर की सफाई करके खाली करने तक काम करते हैं, हमारे वर्कर्स फिल्म उद्योग में सबसे ज्यादा मेहनत का काम करते है। हैरानी की बात ये है की हमारे मेम्बरों / वर्करों को सेट पर काम करते लिपिक मरा जो मुलभुत सुविधाएं मिलनी चाहिए, उससे उन्हें अभी तक वंचित रखा गया है।

१. फिल्म उद्योग में काम करनेवाले कामगारों कों ८ घंटे काम करने की समय सीमा तय होनी चाहिए जो की ८ घंटे के बाद अतिरिक्त घंटो का काम के लिए उन्हें दुगना वेतन (ओवर टाइम) दिया जाना चाहिए।

२. हमारे वर्कर डे वेजेस में काम करते है, उन्हें रोज के रोज उनका मेहनताना मिल जाना चाहिए, लेकिन रोज रोज तो नहीं उन्हें महीनो तक पेमेंट नहीं दिया जाता है, कई बार तो काम करवाने के बाद उन्हें पैसे भी नहीं मिलते है। हमारे वर्करों को डेली के डेली पेमेंट देने की व्यवस्था करें।

  1. सेट निर्माण कार्य के लिए काम करने वाले मजदूरों को अच्छी गुणवन्ता वाला दोपहर का भोजन नहीं दिया जाता है, उन्हें अच्छे भोजन मिलना चाहिए और समय समय पर डिपार्टमेंटल अधिकारी द्वारा फ़ूड इंस्पेक्शन होना चाहिए।

४. वर्करों को भोजन करने के लिए सेट पर साफ सफाई के साथ बैठकर खाने के लिए जगह निश्चित किया जाए।

५. शूटिंग में पुरे १ घंटे का लंच / डिनर होना चाहिए किसी कारणवश नो-ब्रेक में काम करवाया जाता है तो जैसे पहले हाफ शिफ्ट दिया जाता था वह कुछ जगह बंद हो चूका है उसे शुरू किया जाये।

६. मंथली काम करने वालों को हर रविवार को फिक्स छुट्टी मिलनी चाहिए, कुछ प्रोड्यूसर अग्रीमेंट में ४ छुट्टी लिखकर देते तो है पर देते नहीं अगर कभी देते भी है तो अपनी मर्जी से छुट्टी देते है, जो मेम्बर प्रोड्यूसर के अग्रीमेंट के नियम की बात करते है उन्हें काम से निकल दिया जाता है।

७. महीने की पगार पर काम करने वाले वर्करों को हर महीने १० तारीख के पहले उनकी मासिक पगार उनके बैंक खाते में ट्रांसफर हो जाना चाहिए कई प्रोड्यूसर है जो समय पर पेमेंट नहीं करते है।

८. जो हमारी यूनियन ने रेट तय किया है उससे हमारे मेम्बरों को कम पेमेंट दिया जाता है,

हमारी जो यूनियन का रेट है वो हमारे मेम्बरों को दिया जाना चाहिए।
९. हमारे वर्करों का काम किया हुआ पैसा किसी भी प्रोडक्शन डिज़ाइनर / आर्ट डायरेक्टर, इक्विपमेंट मालिक, या अन्य किसी कांट्रेक्टर को ना दे, क्यूंकि प्रोड्यूसर से पूरा पैसा लेने के बाद भी कभी-कभी ये सभी लोग हमारे वर्कर का पैसा लेकर उन्हें कम रेट देते है, और कई बार तो नुकसान का बहाना बनाकर सारा पेमेंट गबन कर जाते है या सालों साल पेमेंट नहीं देते है। ऐसे कई वारदातें हुई है जिसका करोड़ों रुपया मेम्बरों को नहीं मिला है।

१०. यदि किसी इमरजेंसी या कारणवश प्रोड्यूसर को कॉन्ट्रैक्ट देना पड़ता है, तो जब तक काम किये मेम्बरों या यूनियन से N.O.C. नहीं मिल जाती तब तक जितना वर्कर का पेमेंट है उतना रोक कर रखे।

११. किसी कारणवश किसी प्रोडक्शन डिज़ाइनर, आर्ट डायरेक्टर, इनचार्ज या किसी भी कांट्रेक्टर को प्रोड्यूसर डायरेक्ट पेमेंट देता है और हमारे मेम्बरों को पेमेंट नहीं मिलता है तो उस पेमेंट की सारी जिम्मेदारी प्रोड्यूसर की होगी, और मेम्बर का पेमेंट डिस्प्यूट के १५ दिन के अंदर
मिल जाना चाहिए।
१२. सेटिंग या शूटिंग के स्थलों पर काम करने वाले वर्करों का प्रोड्यूसर द्वारा सामूहिक बिमा

(इन्शुरंस) करना अनिवार्य होना चाहिए।

१३. यदि सेटिंग या शूटिंग में काम के दौरान कभी दुर्घटना होती है तो उसकी सारी जिमेदारी हॉस्पिटल से लेकर उसके मेडिकली फिट होने तक सारी जिम्मेदारी प्रोड्यूसर की होनी चाहिए।

१४. सेटिंग या शूटिंग के स्थल पे भले ही प्रोड्यूसर ने कॉन्ट्रैक्ट दिया हुआ हो या न दिया हो, अगर वर्कर का किसी दुर्घटना से देहांत हो जाता है, तो उसका मुआवजा ७ दिन के अंदर मेम्बर की फॅमिली को दिया जाये और उसके परिवार में से किसी एक सदस्य को नौकरी दिया जाए।

१५. तराफे (उंचाई) पर काम करते समय वर्करों को हार्नेस बेल्ट और हेलमेट प्रोड्यूसर द्वारा देना चाहिए, जिसके चलते बड़ी दुर्घटना होने से रुक सकते है और वर्कर भी सुरक्षित रहेंगे। केवल तराफे के काम की जानकारी रखने वाले मेंबर से ही तराफा बांधने का काम करवाना चाहिए।

१६. शूटिंग के लिए जो फ्लोर बुक किया जाता है वो कॉन्क्रीट और लोखंड से बना होता है, जिसमें सालों साल शूटिंग और सेटिंग का काम होते रहता है। वर्करों की सुरक्षा को देखते हुए बी.एम.सी द्वारा उन फ्लोर का समय समय पर स्ट्रक्चरल ऑडिट होना चाहिए और उस ऑडिट की कॉपी सेट पर लगनी चाहिए।

१७. जितने भी लाइट इक्विपमेंट वाले है शूटिंग के पहले उन सभी की लाइट की डिपार्टमेंटल जाँच होनी चाहिए, कभी-कभी कई बड़े दुर्घटनाए खराब लाइट के चलते मेम्बरों की जान भी चली गयी है।

१८. सेटिंग या शूटिंग का काम खत्म होने के बाद सेट को डिसमेंटल करने के पहले प्रोड्यूसरों द्वारा काम किये हुए वर्करों का पेमेंट उनके बैंक खाते में या उनके यूनियन में भुगतान करना चाहिए।

१९. प्रोड्यूसर के तरफ से सेटिंग / शूटिंग में काम करने वाले वर्करों को हाजरी कार्ड देना अनिवार्य

है, किसी भी कांट्रेक्टर के नाम का नहीं होना चाहिए।

२०. वर्करों को कनवेंस डेली मिलना चाहिए।

२१. सेकंड यूनिट में काम करने वाले वर्करों का पेमेंट डेली कॅश या उनके बैंक खाते में ट्रान्सफर करना चाहिए।

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