गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हजरत खदीजा तुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा की याद में सामूहिक कुरआन ख्वानी हुई। उनकी ज़िंदगी पर रोशनी डाली गई। उनका यौमे विसाल (निधन) दस रमजान को हुआ था।
मस्जिद के इमाम मौलाना महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि हजरत खदीजा बहुत बुलंद किरदार, आबिदा और जाहिदा महिला थीं। हजरत खदीजा ने गरीब मिस्कीनों की मिसाली इमदाद (मदद) की।अपने व्यापार से हुई कमाई को हजरत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं थीं। हजरत खदीजा ने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में दीन-ए-इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। पैग़ंबरे इस्लाम ने जब ऐलाने नुबूवत किया तो महिलाओं में सबसे पहले ईमान लाने वाली महिला हजरत खदीजा थीं। खातूने जन्नत हजरत फातिमा उन्हीं की बेटी हैं।
मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर में कारी अफजल बरकाती ने कहा कि हजरत खदीजा का मक्का शरीफ में कपड़े का बहुत बड़ा व्यापार था। उनका कारोबार कई दूसरे मुल्कों तक होता था। हजरत खदीजा की बताई तालीमात पर अमल करके दुनिया की तमाम महिलाएं दीन व दुनिया दोनों संवार सकती हैं। हजरत खदीजा ने हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक, किरदार, मेहनत, लगन और ईमानदारी से प्रभावित होकर निकाह का पैगाम भेजा, जिसे उन्होंने कुबूल कर लिया। उस वक्त पैग़ंबरे इस्लाम की उम्र 25 साल जबकि हजरत खदीजा की उम्र चालीस साल थी। वह बेवा (विधवा) थीं। इस तरह हजरत खदीजा पैग़ंबरे इस्लाम की पहली बीवी बनीं। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।
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