बरेली, उत्तर प्रदेश।
रमज़ान माह का आज तीसरा जुमा था। रोज़ेदारों ने रोज़ा रखकर अल्लाह की इबादत में अपना दिन गुजारा। सभी प्रमुख मस्जिदों,दरगाहों व खानकाहों में नमाज़ियों की भीड़ उमड़ी। मस्जिदों में इमामों ने रमज़ान की अहमियत के साथ कुरान की अज़मत बयान की। ज़कात व सदक़ा-ए-फित्र का मसला बयान किया। डेढ़ बजे किला की जामा मस्जिद में नमाज़ अदा की गई। इसके अलावा ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया,दरगाह शाहदाना वली,दरगाह शाह शराफत अली मियां,दरगाह वली मियां,दरगाह बशीर मियां,दरगाह वामिक मियां,मस्जिद नोमहला,नूरानी मस्जिद,सुनहरी मस्जिद,हबीबिया मस्जिद,छः मीनारा मस्जिद,बीबी जी मस्जिद,मुफ़्ती आज़म हिन्द मस्जिद,मोती मस्जिद,हरी मस्जिद,इमली वाली मस्जिद आदि में बड़ी तादात में नमाज़ियों ने नमाज़ अदा कर रब की बारगाह में दुआ की।
दरगाह आला हज़रत के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि सबसे आखिर में दरगाह आला हज़रत की रज़ा मस्जिद में दोपहर साढ़े तीन बजे नमाज़ अदा की गई। *यहाँ बाद नमाज़-ए-जुमा मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी ने एतेकाफ की फज़ीलत बयान करते हुए कहा कि एतिकाफ़ का मतलब है अल्लाह की रज़ा की खातिर दुनियादारी से अलग अकेले मस्जिद में एक जगह बैठकर तन्हाई अख्तियार कर लेना एतिकाफ़ है। रमज़ान के आखिरी 10 दिन का जो एतिकाफ किया जाता है वह सुन्नत-ए-मुअक़्क़दा कहलाता है। एतिकाफ बस्ती में अगर सबने छोड़ दिया तो सबकी पकड़ होगी और अगर एक ने भी कर लिया तो सब छूट जाएंगे। एतिकाफ में रोज़ेदार होना शर्त है। मर्द को एतिकाफ के लिए मस्जिद में और औरतो को घर मे रहकर एतिकाफ में बैठना का हुक़्म आया है। 20 रमज़ान को सूर्य डूबने से पहले एतिकाफ़ की नियत से मस्जिद में मौजूद होना ज़रूरी है। अगर मगरिब के बाद नियत की तो नही होगा। ये ईद की चाँद रात तक जारी रहता है। वही जसोली स्थित मस्जिद पीराशाह के इमाम मौलाना तौहीद रज़ा ने ख़ुत्बे देने से पहले अपनी तक़रीर में कहा कि जिनको अल्लाह ने साहिबे निसाब (मालदार) मुसलमान किया और उन पर ज़कात फ़र्ज़ हो चुकी है तो वो मुसलमान अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए जल्द से जल्द अपने माल की ज़कात व सदक़ा-ए-फित्र अदा कर दे।