शहर की एक दर्जन से मस्जिदों में तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो गया। सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में हाफिज मो. मोहसिन, मस्जिद जामे नूर जफ़र कॉलोनी बहरामपुर में मौलाना सद्दाम हुसैन निज़ामी, रज़ा मस्जिद जाफरा बाजार में हाफिज मो. मुजम्मिल रजा खान, गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में हाफिज शमसुद्दीन, सुन्नी जामा मस्जिद सौदागार मोहल्ला में कारी मो. मोहसिन बरकाती, मस्जिद फहीम रसूलपुर में बरकाती मकतब के पांच बच्चों हाफिज अब्दुर्रज्जाक, हाफिज मो. मुगीस, मो. नफीस, मो. अयान, मो. अनस, फिरदौस जामा मस्जिद जमुनहिया बाग में हाफिज अनवार अहमद, मक्का मस्जिद मेवातीपुर में कारी अंसारुल हक कादरी आदि ने तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल किया। हाफिज-ए-कुरआन को तोहफों से नवाजा गया। उलमा किराम ने कहा कि तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का शुरु हो चुका है। लिहाजा खूब इबादत करें और गुनाहों की माफी मांगें। इसमें एक रात ऐसी है जिसमें इबादत करने का सवाब हजार रातों की इबादत के बराबर है। जिसे शबे क़द्र के नाम से जाना जाता है। रमज़ान में कुरआन नाजिल हुआ। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमन, तरक्की व खुशहाली के लिए दुआ की गई।