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महाराजगंज

जो भी सरकारे दो आलम की सना करते है, बागे फिरदौस में आराम किया करते है।

जो भी सरकारे दो आलम की सना करते है, बागे फिरदौस में आराम किया करते है।

बरेली, उत्तर प्रदेश।

 

उर्से रज़वी में परचम कुशाई व हुज्जातुल इस्लाम के कुल शरीफ के बाद मुख्य कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय नातिया उर्स स्थल इस्लामिया मैदान में दरगाह प्रमुख हजरत मौलाना सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती व सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत व सय्यद आसिफ मियां उर्स प्रभारी राशिद अली खान की देखरेख में शुरू हुआ। जिसमें देश विदेश के मशहूर शायरों ने अपने-अपने कलाम से फ़िज़ा में रूहानियत का माहौल बना दिया। मिसरा तरही *उंगलियां कानों में दे दे के सुना करते है* रहा।

मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि दरगाह के वरिष्ठ शिक्षक मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी,मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी,मुफ़्ती अनवर अली,मुफ़्ती मोइनुद्दीन,मुफ़्ती अय्यूब,मौलाना अख्तर आदि की निगरानी में मुशायरा का आगाज़ तिलावत-ए-कुरान से कारी रिज़वान रज़ा ने किया। हाजी गुलाम सुब्हानी व आसिम नूरी में मिलाद का नज़राना पेश किया। इसके बाद मुशायरा की निज़ामत (संचालन) संयुक्त रूप से मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी व कारी नाज़िर रज़ा ने किया। मुख्य रूप से नेपाल से आये शायर नेमत रज़वी,शायर ए इस्लाम कैफुलवरा रज़वी,बनारस से आये असजद रज़ा, रांची के दिलकश राचवीं,शाहजहांपुर के फहीम बिस्मिल के अलावा अमन तिलयापुरी,मुफ़्ती जमील,मुफ़्ती सगीर अख्तर मिस्वाही,मौलाना अख्तर,रईस बरेलवी,असरार नईमी,नवाब अख्तर,डॉक्टर अदनान काशिफ,इज़हार शाहजहांपुरी,महशर बरेलवी ने बारी-बारी से अपने कलाम पेश किए।

मुफ़्ती अनवर अली ने ये कलाम पढ़ कर खूब दाद पाई। *जो भी सरकारें दो आलम की सना करते है,बागे फिरदौस में आराम किया करते है।* दूसरा कलाम ये पढ़ा *दुश्मने दीन मेरे आका के सनाखानों को, उंगलियां कानों में दे दे के सुना करते है।*

मुफ्ती मोइन खान ने पढ़ा *”ऐ मिरे भाई तु हक़ को ही फक़्त हक़ कहना,यह सबक पहले से असलाफ दिया करते है।”*

नेपाल से आए शायर -ए-इस्लाम मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी ने ये कलाम पेश कर दाद पाई *”मरकज़ियत की है यह शान रज़ा के दम से,किस लिए लोगों में वह शोर किया करते है।”*

मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी ने पढ़ा *”गौसे आजम से है मजबूत रिश्ता अपना, हम सदा उनके ही साए में जिया करते है।”*

मुफ्ती सगीर अख़्तर मिस्वाही का कलाम *”जिसने चेहरे पे मली ख़ाके मदीना, उस पे खुर्शीदो कमर रश्क किया करते है।*

कारी अब्दुरहमान क़ादरी ने पेश किया *”हाय महबूब पे जो जान दिया करते है,उनकी किस्मत पे मलक नाज़ किया करते है”*।

असरार नसीमी ने पढ़ा *”मौत के बाद जिंदा वो रहा करते है,इश्के सरकार में हस्ती जो फना करते है।”*

डॉक्टर अमन तिलियापुरी ने पढ़ा *”जब भी हम दर्द से दो चार हुआ करते है,रोज़ा-ए-नूरी पे आकर दुआ करते है।”*

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